बुधवार, 22 मई 2013


ग़ज़ल

मुझको
भूले हुए नामों से बुलाये कोई
फिर से इक ख़्वाब सुहाना सा दिखाये कोई

अब तो हर सिम्त है फैली हुई इक ख़ामोशी
कम से कम याद की  आवाज़ तो आए कोई

आज गरदाब हुआ ग़र्क सफ़ीने में मिरे
आके गरदाब को कश्ती से बचाये कोई

ना ये तोड़े ही बने और न खुलने  से खुले
कैसी यह गाँठ  पड़ी दिल में बताये कोई

क्यों छलक जाते हैं अरमान तेरे आने से

इस मुअम्मे का हमे हल तो सुझाये कोई

मुझको आता है मुकद्दर की हिफ़ाज़त करना

मेरे हाथों से लकीरें ना चुराये कोई

इश्क कि राह में हम दूर तलक आ पहुंचे
अब तो इस राह से हम को न हटाये कोई

नूर भर जाएगा दुनियां के हर इक गोशे में
प्रेम की शम्मा को इक बार जलाये कोई

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