शनिवार, 20 अक्तूबर 2012


ग़ज़ल

जल बुझा दिल मगर शरारे अभी बाकी हैं
संभल के छेड़ना अंगारे अभी बाकी हैं

जनूने इश्क के फसाद में ता-उम्र लुटे
इम्तिहाँ और भी हमारे अभी बाकी हैं
 
तमाशा जारीं है ऐ दोस्तो अभी  ठहरो
मेरी रुसवाई के नज़ारे  अभी बाकी हैं
 
कैसी ग़रक़ाब हुई जाती है दिल की कश्ती
उफ़नती मौजें, तेज़ धारे अभी बाकी हैं
 

ऐ हसीं ख़्वाब थोड़ी देर अभी रुक जाओ    
 फ़लक़ में देर है सितारे अभी बाकी हैं 

फ़िज़ा में तुन्द हवाएं हैं रक्सां देख ज़रा
तूफ़ान आने के इशारे अभी बाकी हैं

शोला-ए-प्रेम को
आतिश की ज़रूरत क्यों हो  
सुलगते  ज़ख्मो के सहारे अभी बाकी हैं.......प्रेम लता


रक्सां = तांडव नाचती    फ़लक़ = सुबह  तुन्द = उलटी  ग़रक़ाब = डूबना
ग़ज़ल      Sep 17, 2012
 
मिली सच बोलने की यह सज़ा  है,
कि हर इक शख्स मुझसे ही ख़फा है!

मेरी हर आह  पर कहती है दुनियां,
कि सच्चे प्यार का यह ही सिला है!

जियो कहकर किया तर्के-रिफाक़त
दुआ है या  कोई
 यह  बद्दुआ है

अदब सीखा है हमने क्यों वफ़ा का
उन्हें सब से बड़ा ये  ही गिला है
 
दिया है “प्रेम” को हर जख्म जिसने  
यह दिल अब तक उसे ही ढूँढता है


ग़ज़ल

करिया
- जां में ख़ामोशी है अभी
दिल में इक हूक सी उठी है अभी
 
अब्र से कह दो टूटकर बरसे
प्यास सहराओं की जगी है अभी
 
तेरे दिल से जो आशनाई थी  
मेरी रूह में उतर गयी है अभी
 
तुम अभी से पलक भिगोने लगे
दास्तां दर्द की पड़ी है अभी

तेरा दामन भीग जाए कहीं
चश्म--पुरनम झुकी हुई है अभी
 
रफ़्ता रफ़्ता यकीन आएगा
इश्क की हर अदा नई है अभी

तेरी खुशबू से मेरी सांसों की  
गुफ्तगू सी कोई हुई है अभी
 
कैसे हो जिंदगी खिलाफे जहां
तेरा ही ग़म उठा रही है अभी

हम से पूछो ना प्रेम “के किस्से
हम पे दीवानगी चढ़ी है अभी
 
१०/१८ /२०१२ .........प्रेम लता
ग़ज़ल
दिल लिया नींद भी ली चैन चुराया तुमने ,
इक गुनाह और करो मुझ से चुरा लो मुझ को!
जिस्म हस्सास हुआ रूह भी ज़ख्मी है बहुत,
आज तो अपने ही साये में छिपा लो मुझ को!
तुम हकीकत में नहीं ख़्वाब में जीते हो चलो,
बना के ख़्वाब  ही पलकों पे सजा लो मुझ को!
कभी इक बार तो तुम खुद में मुझे जीने दो,
अपनी सांसों का कोई लम्हा बना लो मुझ को!  
तू ग़ज़लकार  है सुनते हैं बहुत नाम तेरा,
अपनी ग़ज़लों में छिपे सोज़ में ढालो मुझ को

!
जिस किसी मोड़ पे तुमने हमे छोड़ा था कभी,
वहीँ बुत बन गये हैं आओ  जगा लो मुझ को!

मुझ में ताक़त नहीं है  तुम से जुदा रहने की,
मान ली हार ,इम्तिहा में ना डालो मुझ को!


रब्ब ने तो प्रेमका इक कतरा बनाया था मुझे,
तुम समंदर कि तरह खुद में समा लो मुझ को!