ग़ज़ल
मुझको भूले हुए नामों से बुलाये कोई
फिर से इक ख़्वाब सुहाना सा दिखाये कोई
अब तो हर सिम्त है फैली हुई इक ख़ामोशी
कम से कम याद की आवाज़ तो आए कोई
मुझको भूले हुए नामों से बुलाये कोई
फिर से इक ख़्वाब सुहाना सा दिखाये कोई
अब तो हर सिम्त है फैली हुई इक ख़ामोशी
कम से कम याद की आवाज़ तो आए कोई
आज गरदाब हुआ ग़र्क सफ़ीने में मिरे
आके गरदाब को कश्ती से बचाये कोई
आके गरदाब को कश्ती से बचाये कोई
ना ये तोड़े ही बने और न खुलने से खुले
कैसी यह गाँठ पड़ी दिल में बताये कोई
क्यों छलक जाते हैं अरमान तेरे आने से
इस मुअम्मे का हमे हल तो सुझाये कोई
मुझको आता है मुकद्दर की हिफ़ाज़त करना
मेरे हाथों से लकीरें ना चुराये कोई
कैसी यह गाँठ पड़ी दिल में बताये कोई
क्यों छलक जाते हैं अरमान तेरे आने से
इस मुअम्मे का हमे हल तो सुझाये कोई
मुझको आता है मुकद्दर की हिफ़ाज़त करना
मेरे हाथों से लकीरें ना चुराये कोई
इश्क कि राह में हम दूर तलक आ पहुंचे
अब तो इस राह से हम को न हटाये कोई
अब तो इस राह से हम को न हटाये कोई
नूर भर जाएगा दुनियां के हर इक गोशे में
प्रेम” की शम्मा को इक बार जलाये कोई
प्रेम” की शम्मा को इक बार जलाये कोई