रूदाद-ऐ-मोहब्बत
जी हां मैं मोहब्बत हूं
रब के पैरों कि आहट हूं,
बेचैन दिलों की राहत हूं!
मैं हर पाकीज़ा रिश्ते के,
अस्सास में बसी जरूरत हूँ!
जी हाँ मैं मोहब्बत हू!
कुदरत की एन हकीकत हूँ,
मंदिर की एक इबादत हूँ!
रूहों की पाक अमानत हूँ,
मैं हर तायत की लज़्ज़त हूं!
जी हाँ मैं मोहब्बत हूँ!
दिलबर की जुस्तजू में हूं,
हमदम की गुफ़्तगू में हूँ !
मैं फूलों की ख़ुशबू में हूं!
मैं ही आबे जेहूँ में हूँ!
जी हाँ मैं मोहब्बत हूँ!
मैं गुलों में और गुलज़ारों में,
मैं पायल की झंकारों में!
मैं मेहरो –माह सितारों में,
कुदरत के हंसी नजारों मैं!
जी हाँ मैं मोहब्बत हूँ!
सदियों से बादल से मिलकर,
मैं दमक रही बजली बन कर!
और बन कर ज़िया सितारों की,
में चमक रही हूं अम्बर पर !
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
सब ऋतुओं में मधुमास हूं मैं,
भँवरे के दिल की प्यास हूं मैं!
नाज़ुक दिल का अहसास हूं मैं,
इक टूटे दिल की आस हूं मैं!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
आगाज़ हूं मैं अंजाम हूं मैं,
आरज़ू हूं मैं अरमान हूं मैं!
इखलाक भी मैं ईमान भी मैं,
इकरार भी मैं इत्माम भी मैं!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
वारिस शाह के फरमान में हूं,
और बुल्लेह शाह के गान में हूं!
मैं गुरु ग्रन्थ के ज्ञान में हूं,
मैं गीता और कुरान में हूं!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
मैं शम्मा में परवानो में,
मैं हूँ मुरली की तानो में!
मैं आशिक के अरमानो में,
मैं इश्क के हूं अफ़सानों में!
जी हां मैं मोहब्बत हूं
मैं हीरों के दिल में बसती,
रांझे की बंसी में बजती!
बेवा के बैनो में रोती,
शादी के गीतों में हँसती!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
जूलियट के इंतज़ार में हूं,
रोमिओं के ऐतबार में हूं !
मैं कोहकन के इकरार में हू,
लैला की हर पुकार में हूं !
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
क़ातिब भी हूं किताब भी हूं,
शागिर्द भी हूं उस्ताद भी हूं!
हँसते दिल की आवाज़ भी हूं,
शीरीं भी हूं फरहाद भी हूं!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
मैं इश्क भी हूं मैं आशिक भी,
आलम भी हूं आराईश भी !
मैं ख़ुदा की हसीं इनायत भी,
प्यासी रूहों की ज़रूरत भी!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
मैं ही मकीन मैं ही मकान,
मैं ही धरती और आस्मान!
और देख ज़रा इतिहास में भी,
थे बादशाह मेरे गुलाम !
जी हां मै मोहब्बत हूं!
पर आज मेरा क्या हाल हुआ,
हर दिल से मुझे निकाल दिया!
मैं रह गयी सिर्फ किताबों में,
गीतों-नग़मों में ढाल दिया!
जी हां मैं मोहब्बत हूं
मैं आ पहुंची व्योपारों में,
पैसों में और दीनारों में!
सिक्कों में मुझ को तोल रहे,
बिक गयी मैं आज बाज़ारों में!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
दिल से जो मुझे मिटाओगे,
इख़लास से जो गिर जाओगे!
तब एक बात लाज़िम जानो,
तुम सकूं कभी न पाओगे!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
जो मुझ को भूल गया इंसां,
तू पारसाई को तरसेगा!
इस ज़ोर सितम कि दुनिया में,
फिर मेहरो वफ़ा को तरसेगा!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
जो रही चमन में ऐसी हवा,
सब गुन्चे ख़ुशबू खोयेंगे!
फिर देखेगा तुसामी कई,
चारों उन्सर तब रोयेंगे!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
तस्कीने आलम जो चाहो ,
बस रस्मे वफ़ा निभाओ तुम!
इस ज़ुल्म जफा सब को छोडो,
बस मुझ को गले लगाओ तुम!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
है मेरा तुम से वादा यह ,
आलम में खुशियाँ भर दूँगी!
मुस्काएगा गोशा गोशा,
और हुस्ने बहाराँ कर दूँगी!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!....प्रेम लता
बेचैन दिलों की राहत हूं!
मैं हर पाकीज़ा रिश्ते के,
अस्सास में बसी जरूरत हूँ!
जी हाँ मैं मोहब्बत हू!
कुदरत की एन हकीकत हूँ,
मंदिर की एक इबादत हूँ!
रूहों की पाक अमानत हूँ,
मैं हर तायत की लज़्ज़त हूं!
जी हाँ मैं मोहब्बत हूँ!
दिलबर की जुस्तजू में हूं,
हमदम की गुफ़्तगू में हूँ !
मैं फूलों की ख़ुशबू में हूं!
मैं ही आबे जेहूँ में हूँ!
जी हाँ मैं मोहब्बत हूँ!
मैं गुलों में और गुलज़ारों में,
मैं पायल की झंकारों में!
मैं मेहरो –माह सितारों में,
कुदरत के हंसी नजारों मैं!
जी हाँ मैं मोहब्बत हूँ!
सदियों से बादल से मिलकर,
मैं दमक रही बजली बन कर!
और बन कर ज़िया सितारों की,
में चमक रही हूं अम्बर पर !
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
सब ऋतुओं में मधुमास हूं मैं,
भँवरे के दिल की प्यास हूं मैं!
नाज़ुक दिल का अहसास हूं मैं,
इक टूटे दिल की आस हूं मैं!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
आगाज़ हूं मैं अंजाम हूं मैं,
आरज़ू हूं मैं अरमान हूं मैं!
इखलाक भी मैं ईमान भी मैं,
इकरार भी मैं इत्माम भी मैं!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
वारिस शाह के फरमान में हूं,
और बुल्लेह शाह के गान में हूं!
मैं गुरु ग्रन्थ के ज्ञान में हूं,
मैं गीता और कुरान में हूं!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
मैं शम्मा में परवानो में,
मैं हूँ मुरली की तानो में!
मैं आशिक के अरमानो में,
मैं इश्क के हूं अफ़सानों में!
जी हां मैं मोहब्बत हूं
मैं हीरों के दिल में बसती,
रांझे की बंसी में बजती!
बेवा के बैनो में रोती,
शादी के गीतों में हँसती!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
जूलियट के इंतज़ार में हूं,
रोमिओं के ऐतबार में हूं !
मैं कोहकन के इकरार में हू,
लैला की हर पुकार में हूं !
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
क़ातिब भी हूं किताब भी हूं,
शागिर्द भी हूं उस्ताद भी हूं!
हँसते दिल की आवाज़ भी हूं,
शीरीं भी हूं फरहाद भी हूं!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
मैं इश्क भी हूं मैं आशिक भी,
आलम भी हूं आराईश भी !
मैं ख़ुदा की हसीं इनायत भी,
प्यासी रूहों की ज़रूरत भी!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
मैं ही मकीन मैं ही मकान,
मैं ही धरती और आस्मान!
और देख ज़रा इतिहास में भी,
थे बादशाह मेरे गुलाम !
जी हां मै मोहब्बत हूं!
पर आज मेरा क्या हाल हुआ,
हर दिल से मुझे निकाल दिया!
मैं रह गयी सिर्फ किताबों में,
गीतों-नग़मों में ढाल दिया!
जी हां मैं मोहब्बत हूं
मैं आ पहुंची व्योपारों में,
पैसों में और दीनारों में!
सिक्कों में मुझ को तोल रहे,
बिक गयी मैं आज बाज़ारों में!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
दिल से जो मुझे मिटाओगे,
इख़लास से जो गिर जाओगे!
तब एक बात लाज़िम जानो,
तुम सकूं कभी न पाओगे!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
जो मुझ को भूल गया इंसां,
तू पारसाई को तरसेगा!
इस ज़ोर सितम कि दुनिया में,
फिर मेहरो वफ़ा को तरसेगा!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
जो रही चमन में ऐसी हवा,
सब गुन्चे ख़ुशबू खोयेंगे!
फिर देखेगा तुसामी कई,
चारों उन्सर तब रोयेंगे!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
तस्कीने आलम जो चाहो ,
बस रस्मे वफ़ा निभाओ तुम!
इस ज़ुल्म जफा सब को छोडो,
बस मुझ को गले लगाओ तुम!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!
है मेरा तुम से वादा यह ,
आलम में खुशियाँ भर दूँगी!
मुस्काएगा गोशा गोशा,
और हुस्ने बहाराँ कर दूँगी!
जी हां मैं मोहब्बत हूं!....प्रेम लता