मंगलवार, 26 जून 2012

गज़ल
वो एक नूर का झरना है जो मचलता है ,
किसी दिये सा मेरी जिंदगी में जलता है!

किसी के ग़म का धुआं रोज़ उड़ के आता है,
 जो आंसुओं की तरह आँख में पिघलता है !

वो बस गया मेरी आँखों में ख़्वाब की सूरत ,
किसी ख्याल सा दिल में भी मेरे पलता है !

जो इक कदम ना चला साथ मेरे सहरा में,
उसी के साये में रहने को दिल मचलता है!

वो आसमां की तरह साथ जागता है मेरे,
हर इक सफ़र में मेरे साथ साथ चलता है!

वो ढल गया मेरे गीतों में इक तरन्नुम सा ,
वो दर्द बन के मेरे शेर में भी ढलता है !

 है "प्रेम" इश्क की इक लौ जली हुई मुझ में 
दिया फ़कीर की कुटिया में जैसे जलता है!
 

शनिवार, 9 जून 2012

ग़ज़ल
अदाए हुस्न जब आवारा हुई!
वफाये इश्क तब आवारा हुई!


हयात-ओ मौत के के मसअले पर
जिंदगी बेसबब आवारा  हुई!

ज़रब अपने रफू जो करने लगे,
तेग उनकी -गज़ब आवारा हुई!

आशनाई बनी  जो दुश्मने जाँ,
आशिकी जाने कब आवारा हुई!

ना उम्मीदी के जख्म रिसने लगे,
कोशिशें सब की सब आवारा हुई!

दीदा-ए-तर  छुपा ली पलकों में
दूदे दिल की कर्ब आवारा हुई!

शर्म से उसने डाली रुख पे नक़ाब,
देखने की तलब आवारा हुई !

यूँ  कसे साज़े ज़िन्दगी के तार,
बजते बजते तरब आवारा हुई !

तिश्नगी हद से बढ़ गयी तब “प्रेम”
झील सी आँखें जब  आवारा हुई!


ज़रब= जख्म कर्ब=व्याकुलता ,पीड़ा दुःख , दूदे-दिल =दिल का धुआं तरब=साज़ की मुख्य तार
लिक्खे हें हथेली पर हंस हंस के सितम हमने,
दिल के इस आँगन में दफनाए हैं गम हमने!

पथराव की बारिश को सहते हुए सीने पर,
रक्खे हैं आईनों के कितने ही भरम हमने !
 

हालात के तूफां हों या दर्द की आंधी हों,
हर हाल में जीने कि खाई है कसम हमने!

जख्मों की कहानी तो सिमटी है दो अश्कों में,
हर गम के फ़साने को कर डाला है कम हमने!

नादानी नहीं है ये
,
रिश्तों की ज़रूरत है,
हाँ उनके सितम को भी माना है करम हमने!

की तुमने तो बेरहमी अपने ही अज़ीज़ों से,
ता-उम्र किये लेकिन गैरों पे रहम हमने!

तकदीर को तोहमत अब किस ह्क़ से  'प्रेम ' हम दें 
,
जब खुद ही तराशे है पत्थर के सनम हमने !