बुधवार, 22 मई 2013


ग़ज़ल
उसकी आँखों में वो नशा देखा,
हर तरफ़ हमने मयकदा देखा!
 
ख़्वाब देखा है एक रस्ते का
,
जिस में मंज़िल को ला-पता देखा
!
 
जब कुरेदी है ख़ाक माज़ी की
,
ज़ख्म–ए-दिल बस हरा हरा देखा
!

सच का इज़हार जब किया हमने
,
हर कोई बस ख़फ़ा ख़फ़ा देखा
!

कश्ती-ए-इश्क है घड़ा कच्चा
,
और दरिया चढ़ा चढ़ा देखा
!
 
इश्क़ देखेंगे क्या ख़िरद
वाले,
हम ने इस में महज़ ख़ुदा देखा!
 
मिसल
आहू तमाम सहरा को,
हर जगह पर सराब सा देखा
!
 
करते किस से तेरी शिकायत हम,
तुझपे तो शहर भी फ़िदा देखा
!

प्रेमकी बारगाह-ऐ-आली में,
तख़्त और ताज भी झुका देखा
!
          प्रेम लता दिसम्बर
, ,२०१२ 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें