ग़ज़ल
धूप गम की जो मिले और निखर जायेंगे
ठोकरें खा के यहाँ हम भी सुधर जायेंगे
हम तो ले जायेंगे कश्ती को भंवर में यारो
हम नही उनमे जो गरदाब से डर जायेंगे
अपना साया भी यहाँ हम से बेवफा निकला
अब तो यह ज़िद है कि हम धूप नगर जायेंगे
उसकी चाहत तो धड़कती है मिरे सीने मैं
उसको पाने के लिए हद से गुज़र जायेंगे
इश्क की राह सलामत रहे इस दुनिया में
कितने ही कैस अभी “प्रेम” डगर जायेंगे
प्रेम लता शर्मा ........०३/०४/२०१३
धूप गम की जो मिले और निखर जायेंगे
ठोकरें खा के यहाँ हम भी सुधर जायेंगे
हम तो ले जायेंगे कश्ती को भंवर में यारो
हम नही उनमे जो गरदाब से डर जायेंगे
अपना साया भी यहाँ हम से बेवफा निकला
अब तो यह ज़िद है कि हम धूप नगर जायेंगे
उसकी चाहत तो धड़कती है मिरे सीने मैं
उसको पाने के लिए हद से गुज़र जायेंगे
इश्क की राह सलामत रहे इस दुनिया में
कितने ही कैस अभी “प्रेम” डगर जायेंगे
प्रेम लता शर्मा ........०३/०४/२०१३
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