बुधवार, 22 मई 2013

ग़ज़ल   
धूप गम की जो मिले और निखर जायेंगे  
ठोकरें खा के यहाँ हम भी सुधर जायेंगे

 
हम तो ले जायेंगे कश्ती को भंवर में यारो
हम नही उनमे जो गरदाब से डर जायेंगे


अपना साया भी यहाँ हम से बेवफा निकला
अब तो यह ज़िद है कि हम धूप नगर जायेंगे


उसकी  चाहत तो धड़कती है मिरे सीने मैं   
उसको  पाने के लिए हद से गुज़र जायेंगे

 
इश्क  की  राह सलामत रहे इस दुनिया में
कितने ही कैस अभी “प्रेम” डगर जायेंगे
प्रेम लता शर्मा ........०३/०४/२०१३

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