ग़ज़ल
आज मिलने मुझे कुछ दर्द पुराने आये
मेरी रातों के अंधेरों को बढ़ाने आये
कैसे नाकाम हुई हसरतें इक इक करके
फिर से माज़ी की कोई चाप सुनाने आये
जिस्म का प्यार कोई प्यार नहीं होता है
प्यार का कोई मसीहा यह पढ़ाने आये
बड़ी मुश्किल से सुलाई थी तमन्ना उनकी
झूठे जलवों से मुझे फिर से लुभाने आये
करके बर्बाद मुझे माँगा है चाहत का हिसाब
आज फिर रूह को बस जिस्म बनाने आये
अब तो पलकों पे ही पथरा गए आंसू मेरे
तन्ज़ दे दे के मुझे फिर से रुलाने आये
कितनी ख़ामोश थी अहसास कि दुनिया मेरी
फिर से सन्नाटों में कोहराम मचाने आये
प्रेम लता शर्मा ......१४/०६/२०१३
आज मिलने मुझे कुछ दर्द पुराने आये
मेरी रातों के अंधेरों को बढ़ाने आये
कैसे नाकाम हुई हसरतें इक इक करके
फिर से माज़ी की कोई चाप सुनाने आये
जिस्म का प्यार कोई प्यार नहीं होता है
प्यार का कोई मसीहा यह पढ़ाने आये
बड़ी मुश्किल से सुलाई थी तमन्ना उनकी
झूठे जलवों से मुझे फिर से लुभाने आये
करके बर्बाद मुझे माँगा है चाहत का हिसाब
आज फिर रूह को बस जिस्म बनाने आये
अब तो पलकों पे ही पथरा गए आंसू मेरे
तन्ज़ दे दे के मुझे फिर से रुलाने आये
कितनी ख़ामोश थी अहसास कि दुनिया मेरी
फिर से सन्नाटों में कोहराम मचाने आये
प्रेम लता शर्मा ......१४/०६/२०१३
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