शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

ग़ज़ल

करिया
- जां में ख़ामोशी है अभी
दिल में इक हूक सी उठी है अभी
 
अब्र से कह दो टूटकर बरसे
प्यास सहराओं की जगी है अभी
 
तेरे दिल से जो आशनाई थी  
मेरी रूह में उतर गयी है अभी
 
तुम अभी से पलक भिगोने लगे
दास्तां दर्द की पड़ी है अभी

तेरा दामन भीग जाए कहीं
चश्म--पुरनम झुकी हुई है अभी
 
रफ़्ता रफ़्ता यकीन आएगा
इश्क की हर अदा नई है अभी

तेरी खुशबू से मेरी सांसों की  
गुफ्तगू सी कोई हुई है अभी
 
कैसे हो जिंदगी खिलाफे जहां
तेरा ही ग़म उठा रही है अभी

हम से पूछो ना प्रेम “के किस्से
हम पे दीवानगी चढ़ी है अभी
 
१०/१८ /२०१२ .........प्रेम लता

4 टिप्‍पणियां:

  1. तेरी खुशबू से मेरी सांसों की
    गुफ्तगू सी कोई हुई है अभी
    ...वाह .... कितना खूबसूरत लिखते हैं आप .... प्रेम लता जी ...दिल को भा गयी आपकी ग़ज़ल

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  3. आदरणीय प्रेरणा जी ,सादर प्रणाम !
    बहुत खूबसूरत आपकी ग़ज़ल ..दिल को छू सी गयी
    लाजबाब पंक्तियाँ - "तेरी खुशबू से .....गुफ्तगू हुयी अभी "

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  4. तुम अभी से पलक भिगोने लगे
    दास्तां दर्द की पड़ी है अभी

    तेरा दामन न भीग जाए कहीं
    चश्म-ऐ-पुरनम झुकी हुई है अभी

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