ज़ख़्मी इक रूह का अहसास हू मैं,
शिद्दते दर्द से हस्सास हूँ मैं !
दिल ये वहशत से पूछता है सवाल,
कौन रोता है , किसकी आस हूँ मैं!
हो गया जो नीसतो नाबूद ,
ऐसे इक महल की असास हूं मैं!
ऐश-ओ-इश्रत तो हैं मय्यसर सब,
है सभी कुछ मगर उदास हूँ मैं!
बरसों से रास्ता मिला न मुझे,
वैसे मंजिल के आस पास हूँ मैं!
आइना मानता नहीं है मगर,
दिल में झाँकू तो बदहवास हूँ मैं!
लाख झीलों से बुझ सके न ऐ प्रेम,
ऐसी कम्बखत एक प्यास हूँ!...प्रेम लता
१ ऐश-ओ-इश्रत = सुख के सामन २ नाबूद= लुप्त ३ असास=नीव ४ मय्यसर= प्राप्त
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दीदी आप मेरी मार्ग दर्शिका हो
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