शुक्रवार, 4 जनवरी 2013


ग़ज़ल

ऐसा रस्ते में इक निशाँ होगा
दामन-ए-शब भी जो अयाँ होगा

चीख  सुनता है कौन अब तेरी  
यह कोई शहर-ए-खुफ़्तगां होगा

बेज़बानी  भी  रंग लाएगी
हाल-ए-दिल आह से बयाँ होगा
    
छोड़ अब जिस्म की सलासिल को  
चल जहाँ  रूह का मकाँ होगा  

शम्मा–ऐ-प्रेम  जल रही होगी
नफ़रतों का धुआँ जहाँ होगा

प्रेम लता ..जनवरी ४ , २०१३

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