ग़ज़ल
ऐसा रस्ते में इक निशाँ होगा
दामन-ए-शब भी जो अयाँ होगा
चीख सुनता है कौन अब तेरी
यह कोई शहर-ए-खुफ़्तगां होगा
बेज़बानी भी रंग लाएगी
हाल-ए-दिल आह से बयाँ होगा
छोड़ अब जिस्म की सलासिल को
चल जहाँ रूह का मकाँ होगा
शम्मा–ऐ-प्रेम जल रही होगी
नफ़रतों का धुआँ जहाँ होगा
प्रेम लता ..जनवरी ४ , २०१३
ऐसा रस्ते में इक निशाँ होगा
दामन-ए-शब भी जो अयाँ होगा
चीख सुनता है कौन अब तेरी
यह कोई शहर-ए-खुफ़्तगां होगा
बेज़बानी भी रंग लाएगी
हाल-ए-दिल आह से बयाँ होगा
छोड़ अब जिस्म की सलासिल को
चल जहाँ रूह का मकाँ होगा
शम्मा–ऐ-प्रेम जल रही होगी
नफ़रतों का धुआँ जहाँ होगा
प्रेम लता ..जनवरी ४ , २०१३
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